पूज्य बाबा गणिनाथ जी की महिमा किंबदन्तियों के आधार पर कई प्रकार से प्रचलित हैं किन्तु विश्वसनीय महिमा निम्न प्रकार हैं– स्व. झींगुर दास जिनका निवास स्थान बलहाडीह, प्रो. गढिया सहरसा से ६ कि. मी. पश्चिम में अवस्थित है । उनका जन्म १८९० के समकक्ष है और मृत्यु १९८१ ई. में हुई । वे युवावस्था से ही अपने इष्ट देवता कुलदेवता बाबा गणिनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा भाव रखते थे । एकदिन रात्रि के समय घोर निद्रा में जब वे सोये हुए थे, तब आकाश मार्ग से एक सुशोभित रथ आकर उनके नजदीक रुक गया । रथ को देखकर वे घबरा गये । उनकी घबराहट को देखकर बाबा रथ पर से उतर कर उनके पास आकर बैठ गए और प्रेम स्वर में बोले –तुम किस देवता की पूजा करते हो ? इसपर झींगुरदास बोले –हम बाबा गणिनाथ जी की पूजा करते हैं जो हमारे इष्ट देवता हैं । तब बाबा मंद मंद मुस्काते हुए बो –मैं ही तुम्हारा देवता गणिनाथ हू“ । साथ ही प्रभु गणिनाथ अपनी इच्छा प्रकट करते हुए बोले कि “मैं राजपलवैया से आया हू“ । कुछ ही समय के पश्चात् ‘राजपलवैया’ गंगा की तीव्रधारा में विलीन हो जायगा इसलिए मैं यहा“ बास करने आया हू“ । तुम मुझे बास हेतु स्थान प्रदान करोगे ?”
प्रभु गणिनाथ जी की बात सुनकर झींगुर दास प्रेमभाव से भर गया तथा कहने लगा कि आप तो अन्तर्यामी है, आपको संसार पूजता है, आपको बास प्रदान करना हमारा सौभाग्य होगा, साथ ही हल्के स्वर में झींगूर दास जमीन संबंधी अपनी अक्षमता प्रकट करते हुए बोले कि यह जमीन संबंधी अपनी अक्षमता प्रकट करते हुए बोले कि यह जमीन बनगा“व निवासी भुवनेश्वर लाल दास का है, वह मुझे नहीं देगा । बाबा फिर झींगुर दास की व्यथित भावना शान्त करते हए बोले कि तुम व्यर्थ चिन्ता मत करो । मैं स्वयं भुवनेश्वर लालदास के पास जाऊंगा । यह कहकर बाबा बनगा“व निवासी भुवनेश्वर लाल दास के यहा“ गए । रात्रि का समय था, बाबा हाथ में जलती हुई ‘मशाल’ लेकर उनके सामने खडा होकर बोले – “मुझे पहचानो लाला ! वह का“पते हुए बोला “मैं पहचान न सका सरकार !” इतना सुनकर बाबा ने कहा – मैं गणीनाथ हू“ । तुम्हारा जमीन बलहाडीह में झींगुर दास के घर के आगे है । मुझे बास करने के लिए दो, वह जमीन मेरे भक्त झींगुर दास को प्रदान करो । अंततः बाबा तेजस्वी स्वर में तीन बार बोले – “जमीन तुम दोगे बोलो जमीन तुम दोगे ? बोलो, बोलो जमीन तुम दोगे कि नहीं ?” बाबा का रौद्ररुप देखकर तथा उनकी लीला समझकर भुवनेश्वर लाल दास बारंबार साष्टांग नमन करने लगा तथा उसी नमन की मुद्रा में बाबा को यह विश्वास दिलाने लगाा कि सुबह की पहली किरण के साथ ही वह जमीन अपने भक्त झींगुर दास को दे देगा । तत्क्षण वहा“ से बाबा अन्तध्र्यान हो गये और झींगुर दास के पास पहु“चकर बोले –मेरे भक्त ! मुझे स्थान के लिए वजमीन मिल गई है । बस रहने योगय कुटिया की व्यवस्था करो । इतना कहकर बाबा गणिनाथ जी महाराज अन्तध्र्यान हो गए ।

रात बीतते ही सूर्योदय की प्रथम किरण के साथ ही भुवनेश्वर लाल दास समपरिवार बलहाडीह झींगुर दास के पास पहु“चे तथा रात में घटित घटना तथा बाबा की लीला को भक्त के सम्मुख प्रकट किया । साथ ही उन्होंने अपनी जमीन तथा २५ (पचिस रुपये) झींगुर दास को सौंपते हुए बोले कि शुभ मुहुर्त के अनुसार विधिपूर्वक एक छोटा सा फूस का घर बनाकर बाबा को स्थापित कर बाबा की कामना को पूर्ण करें ।
कालान्तर में झींगरदास बाबा से इच्छा प्रकट करते हुए, प्रार्थना किए कि यह फूस का घर अगर ईट का मंदिर बन जाता तो कितना अच्छा होता ? परंतु ऐसा संभव होता नहीं दिख रहा है क्योंकि हमारे पास इतना धन नहीं है कि हम इस काम को पूरा कर सकें । बाबा अपने भक्त कि अभिलाषा को समझते हुए बोले कि यह तुलसी का मुडी लो इसी से तुम्हारी इच्छा की पूर्ति होगी तथा सम्पूर्ण कार्य स्वतः सम्पन्न होंगे ।
उस समय झींगुर दास के भाई बन्धु सहरसा के अनतर्गत काम करते थे श्री झींगुर अपने छोटे भाई तथा समस्त परिवार को पूज्य बाबा गणिनाथ जी का मंदिर पुनः ईट का बनाने की बात कह कर बोले–बाबा तुलसी का मुडी दिये हैं । इसी से उनका मन्दिर बन जायगा ।” इस प्रकार पूज्य बाबा गणिनाथ जी का मंदिर का निर्माण १९२५ ई. में हुआ । जो मन्दिर के मुख्य द्वार पर लिखा गया है ।
— भोला प्रसाद गुप्ता (कानू) – स्थानः बलहाडीह टोला, प्रखण्ड: कहरा, जिला: सहरसा
श्रोत: पुनरउत्थान, राष्ट्रिय त्रैमासिक पत्रिका, २०१६